भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द अपना छुपा नहीं सकते / गिरधारी सिंह गहलोत
Kavita Kosh से
दर्द अपना छुपा नहीं सकते।
हर किसी को सुना नहीं सकते।
बस लबों पर हँसी सजाये हुए
दिल से तो मुस्करा नहीं सकते।
तोड़ते क्यों जनाब घर कोई
जब किसी का बसा नहीं सकते।
दिल में गर आपके ज़ुनून नहीं
मंजिलें कोई पा नहीं सकते।
दूर करना दिलों को सोचें क्यों
पास गर उनको ला नहीं सकते।
रहनुमाओं के बस की बात नहीं
मुफ़्लिसी ये मिटा नहीं सकते।
घुल गया ज़ह्र जो हवाओं में
क्या करें अब भगा नहीं सकते।
चंद कागज़ के टुकड़ों की खातिर
आप ईमां डिगा नहीं सकते।
काम अपना 'तुरंत' ख़ुश रखना
हम किसी को रुला नहीं सकते।