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दर्द और प्रेम एक ही तो बात है / प्रतिभा कटियार
Kavita Kosh से
समय ने उन्हें
एक-दूसरे के सामने
ला खड़ा किया था ।
एक-सी दहशत,
एक-सा भय था उनके चेहरे पर
न नाम पता था,
न शक्लें थीं पहचानी हुईं ।
उनके पीछे था
गुस्से में उफनाए लोगों का हुजूम
और लगातार तेज़ हो रहा शोर,
हाथों में थीं नंगी तलवारें, बम, गोले,
आँखों में वहशत
बढ़ता ही जा रहा था हुजूम
उन्होंने पीछे मुड़कर देखा,
फिर सामने,
पीछे थी वहशत
और सामने थी
विशाल, गहरी, भयावह नदी,
दर्द की नदी ।
शोर बढ़ता ही जा रहा था
उन्होंने एक साथ लगा दी छलाँग
दर्द की उस नदी में
वे एक साथ डूबने लगे
मुस्कुराते हुए ।
दर्द की उस नदी में
प्रेम बह रहा था
प्रेम और दर्द एक ही तो बात है ।