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दर्द का बोझ / विमल राजस्थानी

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दर्द तो इतना दिया लेकिन, दवा तुम दे न पायी
याचना मेरी तुम्हारा द्वार छू कर लौट आयी

आँसुओं से भर दिया दृग का खुला आकाश तुमने
एक नन्हें नीड़ पर भेजे पवन उनचास तुमने
आह भर कर मर्मरी सौगात पतझर की सहेजी
ले लिया वापस विहँस ओ निर्दयी! मधुमास तुमने

जुही जैसी गुदगुदी को छीन, पद से रौंद डाला
पीर ऐसी तीव्र दी जो रोम-कूपों में समायी

बिंध गया उपहास-शर से फूल-सा कोमल कलेजा
दर्द का यह बोझ अब मुझसे नहीं जाता सहेजा
आँसुओं का वेग मन के बाँध से रुकता नहीं है
साँस का यह कारवाँ हा! क्या करूँ, थकता नहीं है

क्या हुआ जो कट गये बंधन तुम्हारे क्रूर हाथों
टीस-पीड़ा-वेदना से हो गयी मेरी सगाई

दर्द तो इतना दिया लेकिन, दवा तुम दे न पायी
याचना मेरी तुम्हारा द्वार छू कर लौट आयी

-1.11.1973