भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द का सम्मान / रणजीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द का सम्मान मत करो
नहीं तो वह जम कर बैठ जाएगा
तुम्हारे तन मन में
एक ढीठ मेहमान की तरह
उसके घंटी बजाने या आवाज देने पर
दरवाजे तक तो जाना ही पड़ेगा तुम्हें
पर उसे देखते ही बोलो :
“ आगे चलो भाई
हम भीख को बढ़ावा नहीं देते’’
मत खोलो दरवाजा
कि वह अपने आगमन को तंर्कसंगत बताने
की कोशिश कर सके
उसकी सुनोगे
तो तरस खाओगे
और बहक जाओगे
एक बार उसे भीतर आ जाने दिया तुमने
उसके नाश्ते पानी का इन्तजाम कर दिया
तो वह जाने का नाम नहीं लेगा
दर्द की प्रकृति का द्वन्द्वात्मक रहस्य है यह
कि आप सोचते हैं कि स्वागत-सत्कार से तृप्त होकर
वह चला जाएगा
आपका भी दयाभाव तुष्ट होगा
पर वह जम कर बैठ जाता है उल्टे
जाने का नाम ही नहीं लेता
उपेक्षा कर के ही भगाया जा सकता है उसे।
दर्द का सम्मान मत करो।