दर्द की मण्डी में है ज़्यादा मिला
इश्क का तोड़ा हुआ ताज़ा मिला
भाव अब भी लग रहा चढता हमें
कम हैं ग्राहक तब भी क्यों आधा मिला
है किसानी हुस्न की मालूम है
जब मिला बरसात का मारा मिला
एक जवां मौसम की ज़िम्मेदारियां
कर्ज़ में डूबा वो बेचारा मिला