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दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी

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दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
ख़ून का हिसाब दे ज़ख़्म इख़्तियार कर

धूप बेचता हूँ मैं दिन में आ गया हूँ मैं
चाँद के सवाद में एक शब गुज़ार कर

याद से रिहा न हो रात से जुदा न हो
नींद से ख़फ़ा न हो ख़्वाब इंतिज़ार कर

चाँदनी मुदाम हो रौशनी तमाम हो
वस्ल में क़याम हो हिज्र में दयार कर

आज रूह और दिल एक ज़ुल्म से ख़जिल
यार आदमी से मिल सरहदों उतार कर