भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर / 'साक़ी' फ़ारुक़ी
Kavita Kosh से
दर्द के इताब ले दोस्त उसे शुमार कर
ख़ून का हिसाब दे ज़ख़्म इख़्तियार कर
धूप बेचता हूँ मैं दिन में आ गया हूँ मैं
चाँद के सवाद में एक शब गुज़ार कर
याद से रिहा न हो रात से जुदा न हो
नींद से ख़फ़ा न हो ख़्वाब इंतिज़ार कर
चाँदनी मुदाम हो रौशनी तमाम हो
वस्ल में क़याम हो हिज्र में दयार कर
आज रूह और दिल एक ज़ुल्म से ख़जिल
यार आदमी से मिल सरहदों उतार कर