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दर्द के बिस्तर / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
हुआ अठन्नी दिल का भाव रे,
हम उनके अब न दुलारे हैं।
वो गैरों की धुन में हैं बावरे,
हमें दर्द के बिस्तर प्यारे हैं।
हम झोपड़ी के शहंशाह रे,
उनके तो महल-चौबारे हैं।
लाचार प्रेमिका मेरे गाँव रे,
वो प्रेमी से मॉल दुवारे हैं।
'कविता' अच्छी थी तन्हा रे,
साथी प्रेम में दिन बंजारे हैं।