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दर्द को गीत में ढालो कि बहार आई है / 'हफ़ीज़' बनारसी

दर्द को गीत में ढालो कि बहार आई है
मयकशो जाम उछालो कि बहार आई है
 
मैं सुनाता हूँ नए गीत नए लहन के साथ
तुम उठो साज़ संभालो कि बहार आई है

मह्वशो दीदा-ए-देरीना को पूरा कर दो
बात अब कल पर न टालो कि बहार आई है

उनकी मस्ती भरी आँखें भी यही कहती हैं
आतिशे-शौक़ बुझा लो कि बहार आई है

क्या हो कल सुबह किसे इसकी खबर है यारो
रतजगा आज मना लो कि बहार आई है

उनको रूठे हुए इक उम्र हुई आओ 'हफ़ीज़'
चल के अब उन को मना लो कि बहार आई है