भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द दिल में दीप सा जलता रहेगा / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
दर्द दिल में दीप सा जलता रहेगा
घोर तम को, ज्योति से छलता रहेगा
लाख गम घेरे, मगर मरता नहीं है
ख़्वाब है, हर आँख में पलता रहेगा
माना इक टूटा हुआ हिमखंड है वो
प्रेम की रसधार बन गलता रहेगा
भावना का ज्वार बन बन कर उमड़ता
गीत की वो शक्ल में ढलता रहेगा
आंधियाँ रोकेंगी क्या उर्मिल उसे अब
जो मुसाफिर है सदा चलता रहेगा।