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दर्द दिल में न आँखों में पानी रहे / विकास जोशी
Kavita Kosh से
दर्द दिल में न आंखों में पानी रहे
अपने चेहरे पे बस शादमानी रहे
गुफ़्तगू में गिरूं ना मैं मेयार से
मेरा लहज़ा यूं ही ख़ानदानी रहे
छत पे आए परिंदे की ख़ातिर सदा
एक मिट्टी के बर्तन में पानी रहे
मुझको रक्खा गया घर के कोने में यूं
चीज़ जैसे कोई भी पुरानी रहे
राबता यूं रहे आख़री सांस तक
जब भी बिछड़ें तो आँखों में पानी रहे
ज़ख़्म आए तुझे तो मुझे दर्द हो
यूं लहू में हमारी रवानी रहे
मंज़िलें ना मिलें तो कोई ग़म नहीं
हौसला तो मगर आसमानी रहे