भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द दिल में सभी छुपा रहती / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दर्द दिल मे सभी छिपा रहती
जैसे धागा लिये शमा रहती

चाहती कुछ भी नहीं बदले में
माँ के होठों पे है दुआ रहती

है बसा लेती अपनी साँसों में
दूर खुशबू से कब हवा रहती

बदलियाँ दूरियाँ बढ़ातीं जब
चाँदनी चाँद से खफ़ा रहती

आग लगने से आशियाँ जलते
कब चिराग़ों की पर खता रहती
 
बख़्श दी रब ने जब नज़ाकत यूँ
हुस्न के साथ ही अदा रहती
 
गिरना लाज़िम है यूँ उठा है जो
है बुलंदी नहीं सदा रहती