भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द नयन से सावन बन-बन बहता है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
दर्द नयन से सावन बनकर बहता है।
टपका हरसिंगार यही तो कहता है॥
जिसके दिल पर चोट लगी जितनी गहरी
उतनी पीड़ा उस का दिल ही सहता है॥
आशाओं के स्वप्न सजाता ही रहता
नैनों के घर में जो दिलबर रहता है॥
हैं दीवारें कच्ची नींद नहीं गहरी
वर्षा में वह घर ही पहले ढहता है॥
जल का संचय धर्म नहीं है सरिता का
सड़ जाता है नीर नहीं जो बहता है॥
श्वासों के सोपान चढ़े उतरे जीवन
मात्र धर्म ही साथ प्राण का गहता है॥
जब से तुमने छोड़ दिया मन का आँगन
विरह-वेदना हृदय हमारा सहता है॥