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दर्द पहले सा अब नहीं होता / बलजीत सिंह मुन्तज़िर
Kavita Kosh से
दर्द पहले सा अब नहीं होता ।
मनमुअफिक तो सब नहीं होता ।
तुझसे मिलना हयात में था लिखा,
यूँ ही कुछ बेसबब नहीं होता ।
गर न होती ये आबजू बाहम,
इतना में तश्नालब नहीं होता ।
चन्द ज़रदारों का हुआ वो तो,
हम गरीबों का रब नहीं होता ।
उनके जलवे थे जानाफ्रीन इतने,
क्यूँ कोई जान्बलब नहीं होता ।
मिलती तुझसे न आदते मैकशी,
क़िस्सा यह शामो शब नहीं होता ।
तुम न करते अता इसे खुशियाँ,
तो ये शहरे तरब नहीं होता ।