दर्द पे ही विश्वास बहुत है / सूरज राय 'सूरज'
दर्द पर ही विश्वास बहुत है।
हाँ! वह मेरा खास बहुत है॥
चाह नहीं कि बनूँ ईश्वर
रहूँ मैं उसका दास, बहुत है॥
उस अंधविश्वास पर जब भगवान की मूर्ति को दूध पिलाते हैं। शेर देखें:
बच्चों का भी दूध पी लिया
पत्थर तेरी प्यास बहुत है॥
मरने को तो लाख बरस कम
जीने को इक साँस बहुत है॥
राम है क्या महसूस करोगे
बस मैं का वनवास बहुत है॥
वो ख़ुद दूर खड़ा है ख़ुद से
भीड़ ही उसके पास बहुत है॥
रस्ते-रस्ते तकें भेड़िये
किस हड्डी में मांस बहुत है॥
न आया न आएगा कोई
दरवाज़ों को आस बहुत है॥
अनुभव-अनुभव-अनुभव-अनुभव
ये तो मेरे पास बहुत है॥
बेटा है परदेस में साहब
माँ की ख़ुशी उदास बहुत है॥
हफ्ते के छह दिन छोड़ो माँ
साल में इक उपवास बहुत है॥
तेरा कद मेरे कांधों से
है तुझको एहसास, बहुत है॥
ख़ुशकिस्मत है मेरी बिटिया
माँ के जैसी सास, बहुत है॥
जब मज़हब ही हो खुद्दारी
तब रोटी को घास बहुत है॥
जुगनू हो, मत छेड़ो "सूरज"
दीपक तक परिहास बहुत है॥