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दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए / अलीम 'अख्तर'

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दर्द बढ़ कर दवा न हो जाए
ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए

इन तलव्वुन-मिज़ाजियों का शिकार
कोई मेरे सिवा न हो जाए

लज़्ज़त-ए-इंतिज़ार ही न रहे
कहीं वादा वफ़ा न हो जाए

तेरी रफ़्तार ऐ मआज़-अल्लाह
हश्र कोई बपा न हो जाए

कामयाबी ही कामयाबी हो
तो ये बंदा ख़ुदा न हो जाए

मेरी बे-ताबियों से घबरा कर
कोई मुझ से ख़फ़ा न हो जाए

कुछ तो अंदाज़-ए-जफ़ा कीजिए
दिल सितम-आशना न हो जाए

कहीं नाकामी-ए-असर आख़िर
मुद्दआ-ए-दुआ न हो जाए

वो निगाहें न फेर लें 'अख़्तर'
इश्क़ बे-आसरा न हो जाए