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दर्द भरे सपने जैसा था / रंजन कुमार झा
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तुम्हें देखना इस जीवन के
दर्द भरे सपने जैसा था
तुमको पाने -अपनाने के
पंथ सभी पथरीले पाए
जिस उपवन में खिले कुसुम तुम
उसमें झाड़ कंटीले पाए
हाथ बढ़ाया ज्योंही मैंने
कांटो के चुभने जैसा था
जिस नभ के तुम चांद बने थे
उसमें वह विस्तार नहीं था
शीतलता का नाममात्र भी
संस्कार -व्यवहार नहीं था
मैंने मुख जो उधर किया तो
दाह मिली ,तपने जैसा था
जब खुद को मैं सँभालने की
कोशिश में सब भूल रहा था
तब भी तेरी यादों के ही
गलफांसे में झूल रहा था
अधर खुले जब व्यथा बाँटने
तो केवल कपने जैसा था