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दर्द भी दुनिया के इसमें हैं तुम्हारी याद भी / रविकांत अनमोल

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दर्द भी दुनिया के इसमें हैं तुम्हारी याद भी
क्या बताएँ दिल हमारा शाद है नाशाद भी

तू बता तेरे सिवा किस से कहूं मैं मुद्दआ
तू ही मेरा दर्द है तू ही मिरी फ़र्याद भी

जिनको ये ने'मत नहीं मिलती वो करते हैं गिला
वो करें क्या जिनको धोका दे गई औलाद भी

यह तो तेरे हुस्न पर है क्या बनाता है मुझे
मुझ में तो दोनों निहां रांझा भी है फरहाद भी

बोलने वाले के दिल का आइना होती है बात
शे`र के जो क़द्रदां होंगे वो देंगे दाद भी

यूं तो मैं मसरूफ़ ही रहता हूँ अपने काम में
वक़्त पड़ता है तो फिर आती है तेरी याद भी