दर्द सहकर मुस्कुराने के ज़माने आ गये
दिल को अपने आज़माने के ज़माने आ गये।
फिर बंधेंगे आशिक़ों के से पे साफे सुर्ख़गूं
इश्क़ में फिर जां लुटाने के ज़माने आ गये।
टूटने वाली हैं दरवाज़े की सारी बंदिशें
उनको अपने घर बुलाने के ज़माने आ गये।
घर से लेकर मंडियों तक है खरीदारों की भीड़
खुद को बिकने से बचाने के ज़माने आ गये।
अब न गीली मिट्टियों से तू कोई फरियाद कर
पत्थरों पर गुल खिलाने के ज़माने आ गये।
क्या करेंगे क्या नहीं ये पंछियों के क़ाफ़िले
आसमां के थरथराने के ज़माने आ गये।
मुंह न खोलो साथियों ख़ामोश रहकर सब कहो
आग आंखों से लगाने के ज़माने आ गये।