दर्द सह कर जो मुस्कुराते हैं ।
घाव उन के न पूर पाते हैं।।
कर भरोसा न बात का उनकी
जो मुसीबत में छोड़ जाते हैं।।
रोशनी के लिए अँधेरों में
घर किसी का नहीं जलाते हैं।।
चाहे मरुभूमि में खिलें जा कर
फूल खुशबू सदा लुटाते हैं।।
है डराता न अँधेरा उनको
तारे रातों में जगमगाते हैं।।
डूब जाते हैं बीच धारा में
वो जो चप्पू नहीं चलाते हैं।।
जिनके सिर पर खिंची हों तलवारें
मौत से आँख कब चुराते हैं।।