दर्द से अब दर्द नहीं होता है / नंदा पाण्डेय
हाँ ! अब दर्द से दर्द नहीं होता है
वो दर्द जिसके रिसते आँसुओं से
कल तक सब कुछ भीग रहा था
वो आँसू भी अब समय के साथ
बर्फ की मानिंद जम सा गया है
न जाने क्यों एक अजीब सा
रिश्ता बन गया है
तुमसे और तुम्हारे दिए हर दर्द से
एक साझेदारी सी हो गई है
गीली आँखों की सूखे पलकों के साथ
सब कहते हैं मैं पागल हूँ
जिसे जो कहना है कहे...क्योंकि
अब दर्द से दर्द नहीं होता है...!
प्यार को वेदना में बदल
दोपहर की धूल के बीच ला खड़ा किया तुमने
और आदतन कितने सहज और सरल बने रहे
तुम्हारे लिए बढ़ रही घृणा के बिंबों को
अपने मन के रहस्यमयी गुफाओं में
दफ़नाती चली गई मैं और आज अपने ही
सत्य को नकारने लगी हूँ, मैं...
जानते हो क्यों...?
क्योंकि इतिहास के दरवाजों को
खोलते ही मेरी आत्मा विद्रोह करने लगती है और अपने प्रतिबिम्ब को देख आप चीख उठती हूँ मैं...
फिर भी अब दर्द से दर्द नहीं होता है...!
जानते हो न!
मन का मौन हो जाना
अपने से भागने जैसा ही तो था
कोई जुर्म नहीं किया है
फिर भी
कैदी की तरह महसूस होता है इन दिनों
जिस मुलाकात में करीब हुए थे
उसी में दूर हो रहे हैं आज
मिलन और विछोह के बीच
सूनी ही रही मेरी चंदन, अक्षत और रोली की प्रतीक्षारत थालियां
पर कोई दर्द नहीं हुआ...!
आज जब भीतर ध्वस्त हुए सारे सपनों के
फटे-चीटे चीथड़ों को समेटने में लगी हुई थी...
वहीं उम्मीद की आँखें मेरी आत्मा को टटोल कर अकस्मात पूछ बैठी...
सुनो ! क्या सचमुच तुम्हें अब भी दर्द नहीं हुआ...?
एक गहरी ठेस के साथ आत्मा चीत्कार कर उठी आँसू फुट पड़े...फिर भी
दर्द से दर्द नहीं हुआ...!!!