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दर्द / केदारनाथ अग्रवाल

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दर्द में डूबा
इतना डूबा मैं
कि दर्द परिवेश बन गया
और मैं
दर्द का अभ्यस्त
दर्द में जीने लगा
तमाम उम्र
दर्द से अलग न होने के लिए
तमाम उम्र दोस्त बने रहने के लिए
दर्द का

रचनाकाल: १८-११-१९६७