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दर्द / त्रिलोचन

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दर्द कहाँ ठहरा
साँसों की गली में
देता रहा पहरा

जीवन के सागर का
तल सम नहीं है
कहीं कहीं छिछला है
कहीं कहीं गहरा

सागर ने छोड़ दिया जिसे
उस मरु का सिकता के सागर का,
हाहाकार कितना
मिटा सकेगा लहरा