भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दर्द / धूप के गुनगुने अहसास / उमा अर्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन की
अँधेरी, निर्जन राहों में
जब तुम्हारा दर्द
लावारिस घूमता था,
तब-
मैंने बड़े अपनत्व के साथ
उसे अपना लिया था,
और-
अब यह मेरा है,
नितांत मेरा!