दर्पण कुछ ना बौल्लै / रामफल चहल
यह कविता कुरूक्षेत्र के प्रसिद्ध शायर दोस्त भारद्धाज द्वारा दिये गये मिसरे
"सबके चेहरे देखता है कुछ नहीं कहता कभी
आइनें की कुव्वतें बर्दास्त की हद देखिए"
पर आधारित है जिसमें विभिन्न पात्र आइने के सामने आते हैं। वास्तव में यह कविता सच्ची घटना पर आधारित है। यह दर्पण गांव बौंद कला जिला भिवानी के बस अड्डे पर स्थित एक धर्मशाला में जहां कभी रामकिशन नाई की दुकान होती थी। उसकी मृत्यु के बाद वह धर्मशाला तो खण्डहर में बदल गई परन्तु उसकी दुकान में लगा शीशा आज भी वैसे ही लगा है जिसे देखकर बस की इंतजार में बैठे-बैठे यह कविता लिखी गई है।
म्हारे गाम के बस अड्डे पर लाग रह्या एक पुराना शीशा
बस लिकड़गी वार हुई थी आवण नै हो रह्या था मींह सा
बालकपण म्हं यो शीशा देख हम स्कूल पढ़ण नै जाया करते
उल्टा सीधा मूंह बिचका कै साथियां नै खूब हंसाया करते
याद पुराणी ताजा होग्यी अडै़ पाया करता किसना नाई
अकेला देख शीशा बोल्या घणे दन म्हं दिख्या रामफल भाई
शहर म्हं जाकै होया पराया भूलग्या कती गाम की राही
बीते दिनां का हाल मन्नै बूझ्या तो शीशे पै छाग्यी जरदाई
इस धर्मशाला म्हं नया जड़या जब लोग इसे अड़ै आया करते
शक्ल देख कै खुश हो पैनी मुछ्यां नै खूब पनाया करते
फेर समों बदली अर माणस बदल, बदल गई माणस की जात
चालीस साल के इस अरसे म्हं बदल लिए सारे हालात
तू ध्यान अर कान लगाकै सुण ले बात कहूं मैं साची स्याणी
मेरे तन अर लोगां की आंख्या का मर लिया सै सारा पाणी
फेर शीशा बोल्या मेरे तैं इब कती हद होली सै भाई
चेहरा देख सारे इतरावै खुद तै झूठी तारैं खूब सफाई
सब के चेहरे देखूं सूं अर कुछ नहीं काढूं मीन-मेख
संत सा बण्या रहूं सूं मेरी बरदास्त की हद न देख
मैं बोल्या चल हाल सुणा क्यूं दुखी घणा के लुटग्या तेरा
बोल्या खुद तैं ए सारे झूठ बोलते भीतर काला अर उजला चेहरा
किस किस नै आज मूंह देख्या था शीशा हाल सुनावण लाग्या
तैड़कैऐ एकला देख कै चेहरा लीडर खुद शरमावण लाग्या
इमानदार सा दिखूं सूं पर हल्के न जमां बेच कै खाग्या
फेर अफसर आया रोब दखाया खुद न न्यूं समझावणे लाग्या
आत्मा कोन्या शरीर खड़्या सै आप्पै तैं बतलावण लाग्या
एक दरोगा आया थोड़ा घबराया इब लागूं कती ऐ यमदूत सूं
पर किसने बेरा कितणे ले रह्या घर म्हं एकै कमाऊ पूत सूं
मास्टर आया धमका कै बोल्या टयूशन बिन तू करता बात
छोहरी हों तो करूं इशारे छोहरां के मारूं धुस्से लात
फेर मोटा फूल्या जणूं रसगुल्ला इतणे म्हं एक आया व्यापारी
ब्लैक करूं अर नकली बेचूं इस्सै म्हं सै इज्जत म्हारी
गर्भवती एक औरत आकै मेरे आगै रोवण लाग्गी
डाक्टर कै ले ज्यां सैं पड़ै गिरवाणी गर्भ म्हं जै छोहरी पाग्यी
टूट्टे लीतर पाट्टे कपड़े मूंह लटकाए आया किसान
अन्नदाता कुहावण आला हो रह्या सै इब घणा बिरान
शीशा रोया झगड़ा झोया सारी कहदी अपणी बात
जीवण नै जी करता कोन्या करणा चाहूं आत्मघात
मैं गिर लेता अर दब लेता पर एक फौजी मेरे श्याहमी आया
हाथ घुमा कै जय हिंद बोल्या फिर चौखा सा एक सैल्यूट जमाया
तू अन्धा हो लिया, छिककै रो लिया, मेरी हिम्मत की हद न देख
सियाचिन म्हं दयूं सूं पहरा चाल उस सरहद न देख
तू झूठा तेरे कवि सै झूठे उसने मेरे कान खोले रे
झूठी दुनिया कहती आवै के दर्पण झूठ ना बोले रे
सब के चेहरे देखै सै पर दर्पण कुछ ना बोले रे