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दर्शन क्या होगा / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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जगी नहीं पीड़ा अन्तस में
राग नहीं अनुराग नहीं है
वाणी के श्रृंगार मात्र से
गीतों का सर्जन क्या होगा?

दर्द जहाँ मीरा का होगा
होंगे वहीं कहीं मन मोहन
कबिरा की चादर में लिपटे
सोते हैं सारे सम्मोहन
साँस-साँस में अनहद के स्वर
और भला अर्चन क्या होगा?

कण-कण में हिमगिरि विराट है
क़तरे-क़तरे में है सागर
सूरदास के मुँदे नयन में
कुंज-कुंज गोपी नट नागर
महासृष्टि के तृण-पल्लव से
और बड़ा दर्पण क्या होगा?

जिसने खोजा उसे मिल गया
सीपी में सागर का मोती
सूरज बाँधे उड़ी फिर रही
ये नन्ही छवियाँ खद्योती
घूँघट के पट खुले नहीं तो
प्रियतम का दर्शन क्या होगा?