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दर्शन / बुद्ध-बोध / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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तीन चेतना -
शारीरिक दुर्दशा वयोवृद्धक देखइत यौवन परिणाम
रोगी जनक दुर्गतिहुसँ बुझइत की पुनि शरीर आयास
मरइत देखि लोककेँ जीवन केहन अनित्य करिअ से ज्ञान
बुद्ध वृद्ध रोगी ओ शवकेँ देखि जेना पौलनि निर्वाण

चारि सत्य -

1. दुःख नियत अछि, 2. तकर की मूल, 3. शमन पुनि तथ्य 4. करिअ उपाय विचारि ई चारि बौद्ध मत सत्य

पंचशील -

1. ककरहु हिंसा करिअ नहि, 2. चोरि न, 3. काम न भोग 4. मिथ्या ओ 5. मद पान तजि पंचशील उपयोग

पंच स्कन्ध -

1. रूप, 2. वेदना, 3. संज्ञा ओ, 4. संस्कार तथा 5. विज्ञान
पंच स्कन्ध पर जगत जुड़ल अछि तथागतक अभिधान

अष्टांग मार्ग -

1. सम्यक् ज्ञान:- जतय नहि माया-मोहक हो परिवेश
2. सम्यक् पुनि विचार:- जेहि बल हो वचन-क्रियाक निवेश
3. सम्यक् वचन:- मधुर हितकर ओ सत्य तत्त्वसँ पूर
4. सम्यक् कर्म:- पवित्र अनुत्तेजक हिंसासँ दूर
5. सम्यक् आजीविका:- जाहिमे धर्मक हो न अभाव
6. सम्यक् चेष्टा:- जीहसँ शम दम आत्मसंयमक भाव
7. सम्यक् हो संकल्प:- विश्व-कल्याण भावना मूल
8. सम्यक् ध्यान:- जीवनक परम तत्त्व चिन्तनमे तूल

अष्ट त्याज्य:-

1. हिंसा, 2. चोरी, 3. काम-सुख, 4. मिथ्या, 5. वचन कठोर, 6. अलस, 7. लोभ ओ, 8. घृणा तजि सोचिय त्यागक जोर

दश ग्राह्य:-

1. दान दीनकेँ, 2. ज्ञान हीनकेँ, 3. सेवा दुखी जनक कर्तव्य, 4. चलिअ धर्मपथ, 5. उच्च विचारक करिअ, 6. विनय व्यवहारहु भव्य, 7. अपन दोष - त्रुटि सतत सुधारिअ, 8. जत भेटय गुण करिअ ग्रहण, 9. सिखिअ सिखाबिअ, 10. चलिअ धर्मपथ, दश बुद्धक उपदेश - वचन