छोटी जगह
सटकर खड़े
हम दलदलों में खुद गड़े
नींवें नहीं
गुंबज हवा में
काँपती मीनार है
हर ओर
गूँगी बस्तियों को
घेरती दीवार है
बहरे शहर में
शोर-गुल
मुँह पर मगर ताले जड़े
धंधे कई
सडकें अँधेरी
जंगलों के दाँव हैं
छिछले किनारों पर
पड़ी उलटी
सुबह की नाव है
रिश्ते पुराने
कौन पूछे
नये पत्ते तक झड़े