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दलाली / नारायण झा

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चहुँदिस
खसल अछि गिद्ध
जीत आ मूइल खाइक लेल
सभ दिस
काँउ-काँउ भ' रहल अछि
किछु नोचबाक-तंगड़बाक लेल ?
बात बना अपना दिस
क' लेबाक लेल
झूठक जाल बूनि
ककरो फसयबाक लेल।

कार्यालय, कोट, आ औषधालय
सभतरि बिन-बिन बिनबिनाइत
डिड़ियाइत दिन सँ राति भरि
तकैत-हेरैत लोकक मुँह
बाटे दिस टकटकी लगौने
देने एकटंगा
किछु फूसियेबाक लेल
करैत माथापच्ची
दुष्कर सँ दुष्कर काज पलहि
चुटकी बजबैत निपटबैक
उठा लैछ बीड़ा।

एखन बनि गेल
उत्तम आदर्श पेशा
बिनु पढ़ने
बिनु खर्च कयने
ठगीक डिग्री
मुँह आ बोल बलें
कोन काज नमहर
कोन छोट
कोन काज गरीबक
कोन काज निरीहक
बिनु टके गपो नहि
जाहिमे बिनु टका
बिनु पैरवी बलाक
टांग टूटि जाइछ
तरबा खिया जाइछ
हारि-थाकि नपैछ
अपन घरक रस्ता
सगरो गिद्धक ई जाति
जनमि, पसरल अछि।