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दलित वेश में / जयप्रकाश कर्दम
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इधर उधर की बात न हांको
सीधी बात बताओ तुम
दलित वेश में इस बस्ती में
किस मंशा से आए तुम।
सहानुभूति यदि दलितों से
तुमको है सच्ची, स्वागत है
पर कहना नहीं काफी होगा
कुछ करके भी दिखलाओ तुम।
दलितों का शोषण-उत्पीड़न
जो करते आए रहे सदां
अपने जाति-जनों से कितना
लड़े हो यह बतलाओ तुम।
आवाज यदि दलितों के संग
तुम अपनी नहीं मिला सकते
यह झूंठ-मूठ की हमदर्दी
यूं हमको न दिखलाओ तुम।
सहानुभूति के संवेदन का
राग बहुत आलाप चुके
स्वानुभूति के ताप को यूं
इस तरह नहीं झुठलाओ तुम।
मगरमच्छ के अश्रुओं का
सच जान चुके हैं हम सारा
अपनेपन का खेल न खेलो
अपनापन दिखलाओ तुम।