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दलिद्दर / नवीन ठाकुर ‘संधि’
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भाग दलिद्दर, भाग दलिद्दर,
लैकेॅ आबैं छौ काली खंजर।
मार खैबेॅ तोहें जानिकेॅ कैन्हें,
जायकेॅ कांही छिपी केॅ रेंहेॅ।
थोड़े दिन तक ही दुःख सेहें,
जल्दी सें करें विचार मन्नें-मन्नें।
भरलोॅ प्रकाश छै देखी लेॅ दीया के अंदर,
है दुःख भोगै लेॅ लागबे करतौ,
सब्भेॅ दिन भोगलेॅ छें तेॅ आय के भोगतोॅ?
काली पूजा रोॅ भोरैं भगैबेॅ करतोॅ,
सूप, डलिया पीटी केॅ "संधि" लेतोॅ खबर।