भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दशकों बाद ही सही / राजेन्द्र जोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे दिखाये रास्ते पर नहीं
तू खुद चल
राह अपनी
दशकों बाद
सच है यह कि
चल सकती है तू
अपने पांवों को तूने
देखा ही नहीं
देख एक बार
खुद चलकर
चाहता हूँ अब
मैं भी यही
चाहे दशकों बाद ही सही