दशहरी आम / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
लगभग धड़ी भर आम आए थे
उस दिन घर में
मालकिन ने कहा था उससे
कि जल्दी-जल्दी हाथ चला
रस ही निकालती रहेगी
तो पूड़ियाँ कब तलेगी
भजिए भी निकालने हैं अभी
और सलाद काटकर सजाना है तश्तरी
वह दशहरी आमों का रस निकालती रही :
अस्सी रुपए किलो तो होंगे इस वक़्त
" माँ - माँ !! हमें भी खिलाओ न रस
देखें तो कैसे होते हैं दशहरी आम
जब नए-नए आते हैं मौसम में
हम भी खाएँगे आम
हमें भी दो ... रस "
उसे लगा रस की पतीली के इर्द-गिर्द
बच्चे हड़कंप मचा रहे हैं
फिर उसने कनखियो से घूरा
दायें-बाएँ
और उन्हें चुप होने का किया इशारा
फिर कोई जान न पाया उसके हाथों की ऐय्यारी को
मालकिन भी नहीं
उसके हाथ आमों पर
अब उतने सख़्त नहीं थे
वह छिलकों और गुठलियों में
बचाती जा रही थी थोड़ा-थोड़ा रस
एक थैली में समेट लिए उसने
सारे छिलके और गुठलियाँ
- "जाते-जाते गाय को खिला दूँगी"
मालकिन से कहते हुए
वह सीढ़ियाँ उतर गई ।