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दशहरे का मेला / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
देखा जी हमने दशहरे का मेला।
दशहरे के मेले में देखे तमाशे।
दशहरे के मेले में खाए बताशे।
दशहरे के मेले में की मौज-मस्ती।
मेला था जैसे उजालों की बस्ती।
देखा जी हमने दशहरे का मेला।
दशहरे के मेले में थे ऊँचे झूले।
चढ़े कोई उन पर तो अंबर को छू ले।
दशहरे के मेले में रौनक लगी थी।
सोता वहाँ कौन दुनिया जगी थी।
देखा जी हमने दशहरे का मेला।