दश्त-ए-अम्बोह मुझे सोहबत-ए-आ'ला दे दे / रवि सिन्हा
दश्त-ए-अम्बोह मुझे सोहबत-ए-आ'ला दे दे
दर्द कोई मुझे गैहान का पाला दे दे
चाँद सूरज की पहुँच में तो है सारी दुनिया
मुझको असरार-ए-म'आनी का उजाला दे दे
है मुनक़्क़श जो मिरे बूद की परछाईं पर
रफ़्त के बाद उसे रूप निराला दे दे
मुल्क-ए-जम्हूर की सड़कों पे बहस है कि फ़साद
ख़ल्क़ सुकरात को फिर ज़ह्र का प्याला दे दे
कल के मज़लूम अगर आज के हैवान हुए
मौत बच्चों को गुज़िश्ता का हवाला दे दे
हुक्म तेरा कि रहूँ तेरे गुनाहों में शरीक
ऐ मिरी क़ौम मुझे देस निकाला दे दे
शब्दार्थ :
दश्त-ए-अम्बोह – भीड़ का सुनसान, desert of the crowd;
सोहबत-ए'आला – श्रेष्ठ की संगत, company of the best;
गैहान – सृष्टि, संसार, universe, world;
असरार-ए-म'आनी – अर्थ के रहस्य, secrets of meaning;
मुनक़्क़श – खुदा हुआ, engraved;
बूद – अस्तित्व, existence;
रफ़्त – प्रस्थान, departure;
मुल्क-ए-जम्हूर – जनता का देश, country of the people;
ख़ल्क़ – लोग, people;
मज़लूम – जिनपर ज़ुल्म हुआ हो, oppressed;
गुज़िश्ता – अतीत, past