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दश्त-ओ-दरिया से गुज़रना ही कि घर में रहना / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
दश्त ए दरिया से गुज़रना हो कि घर में रहना
अब तो हर हाल में हमको है सफ़र में रहना
दिल को हर पल किसी जादू के असर में रहना
खुद से निकले तो किसी और के डर मेंरहना
शहर ए गम देख तिरी आब ओ हवा खुश्क न हो
रास आता है उसे दीदा ए तर में रहना
फैसले सारे उसी के हैं हमारी बाबत
इख़्तियार अपना बस इतना कि ख़बर में रहना
वही तन्हाई वही धूप वही बेसम्ती
घर में रहना भी हुआ राह गुज़र में रहना