दसम मुद्रा / भाग 1 / अगस्त्यायनी / मार्कण्डेय प्रवासी
यद्यपि सुदूर दक्षिणित
भेल छल रावण
तैयो दनुजत्वे
आर्य कार्य बाधित छल
हिंसक पशु दल
आश्रममे आबि अहर्निश
हरकम्प मचा दै’ छल
मन अपराधित छल
पाशविक चेतना छल
ऋषि कर्म विरोधी
आश्रमके धाँडि -
करै छल पशु लतखुर्दन
समिधा, साकल्य, हविष्य
छीटि दै छल ते
वन पशुसँ भेल अकच्छ
छला ऋषि मुनिगण
आश्रममे पोषित पशुके
खा क’ वन पशु
हड्डीके यत्र - तत्र
छीटैत रहै’ छल
टाटक घरमे सूतल
नेना भुटकाके
दाँतसँ दबाक’
रक्त मांस चूसै’ छल
भ’ गेलि कतेको माता
पुत्र - बिहीना
निद्रित नैश्यान्धकार
मरणे कहबै’ छल -
गो - अजा - कुलक
पशुधन भ’ गेल अरक्षित
सीदित छल शान्ति तथा -
हिंसा बमकै’ छल
एक दिन अगस्त्याश्रमक
वाह्य परिसरमे
एकत्र भेल जनता-
जनार्दनक सेना
बाजल: ‘हे ऋषिवर!
पीड़ित छी पशु-बलस
छी भय-कम्पित हम
भेल तीन दिन खेना’
झहरै’ छल नोर
अवस्त्र बालकक दृगस
वृद्धाक शब्दमे
कोखि-करेज तरल छल
शान्तिक पीयूष धारके
पीने छल पशु
दक्षिणार्वामे -
आतंकेक गरल छल
जनताके सम्बोधित
कयलान ऋषि दम्पति
कहलनि कि शलाका यज्ञ
करू, पशु भागत
आचार्यत्वक नेतृत्व
भार स्वीकारब
अग्निक भयस पशु
सजन क्षेत्रके त्यागत
ऋषि निर्देशित विधिस
बनि गेल शलाका
प्रत्येक हाथमे भेल
प्रज्वलित क्षणमे
आगा ऋषि दम्पति
पाछाँसँ जन - सेना
ल’ ऊक बढ़ल
हरहोरि मचल छल वनमे
अगणित दानव
मानव व्रतके अपनौलक
भागल किछ सीमा-पार
मरल किछु भयसँ
किछु नुका रहल जा क’
सागरक सलिलमे
हारल निद्रा-तन्द्रा
जागरणक जयसँ
तहिना हिंसक पशु
भागल देखि शलाका
जन - सेना बढ़ल
उड़ल जनु अग्नि-बलाका
छल अग्नि - चेतना
अग्रमुखी भ’ पंक्तित
फहरलै’ प्रतीक्षाकेर
आग्नेय पताका
हिंसक पशु -मुफ?क्त
भेल गिरि वन सागरधरि
भ’ गेल निरापद -
निरपराध जन-जीवन
ऋषि - संग भेल
प्रत्यावर्त्तित जन-सेना
गिरि-कानन अनुशासित
छल, हो जनु उपवन
आयोजित भेल
तीन दिवसक विजयोत्सव
छल भेल अगस्त्य-
ऋषिक राष्ट्रीय अभिनन्दन
जनता ऋषिके
देवता जकाँ अपनौलक
कयलनि अगस्त्य ऋषि
जन-पूजन गण वन्दन
तेसर दिन शिष्य सुतीक्ष्णक
लिखित - निदेशित
नाटक अभिनीत
भेल छल विजयोत्सवमे
ई नाटक ऋषि
जीवनपर छल आधारित
दर्शकक भीड़ छल जुटल
मंचनोत्सवमे
उठि गेल बाह्यपट,
दृश्य आश्रमक आयल
उर्वशी - ऋचा - मुद्रामे
मित्र - वरुण छथि
घटसँ उत्पन्न करै’ छथि
दू टा नेना
एकटा वसिष्ठ
अगस्त्य इतर शिशु ऋषि छथि
अछि शिशु वसिष्ठ किछु शान्त
अगस्त्य सुचंचल
ऋषि - कुलमे
ज्ञान तथा विज्ञान पढ़ै’ अछि
बीतैछ समय
कुम्भज द्वय ऋषि बनि जाइछ
एकटा योग
दोसर बिज्ञान गढ़ै अछि
ऋषिवर अगस्त्यके
मंत्र-दृष्टि भेटै छनि
आचार्य बनै छथि
धनु शास्त्रोमे ऋषिवर
साधना करै’ छथि
महामंत्र - विज्ञानक
आणविक मंत्र-बल
सिद्ध करै’ छथि मुनिवर
आजन्म ब्रह्मचारी
रहबाक विचारे
छथि उग्र तपश्चर्यामे
मनसा केन्द्रित
दैविक, आध्यात्मिक
आ भौतिक सत्ताके
तप-तापे क’ छै छथि ऋषि
स्वतः विकेन्द्रित
दीक्षा लै’ छथि
प्रकृतिक कण-कणसँ ऋषिवर
दै’ छथि ओ शिष्य-
मंडलीके ऋत शिक्षा
विज्ञान - सत्य
उद्घाटित होइछ क्रमशः
सम-भाव पबै’ अछि
ज्ञान, कर्म आ इच्छा
द्रोणाचार्यक गुरु
अग्निवेशके ऋषिवर
दीक्षा द’ धनु-विद्यामे
सिद्ध करै’ छथि
आचार्य कुलक स्थापना
करै छथि एवं
तप - त्याग - तत्त्वके
तेज प्रसिद्ध करै’ छथि
यमुना - तटपर
रवि अनुकूलनमे ऋषिवर
दिनकरक तापमे
मांत्रिक स्नान करै’ छथि
नभचर मणिमान
दैत्य राजके मृत्युक
अभिशाप दैत छथि
शक्तिक ध्यान करै’ छथि
इन्द्रित नहुषक
ऋषि द्रोही स्वरके मुनिवर
तापित - शापित क’
तेज शन्य बनबै’ छथि
अन्याय, अनृत
एवं अशिष्टताके ऋषि
क्रोधाग्नि - कुण्डमके
दिवा-राति जरबै’ छथि
पितरक इच्छासँ
लोपामुद्राके ऋषि
पुत्रक प्राप्तिक लक्ष्ये
पत्नी मानै’ छथि
ऋषिका लोपा
किछु चालि चलै अछि अद्भुत
इल्वल - विल्वलके
ऋषि अगस्त्य मारै’ छथि
बनि पिता दृढ़स्युक
यज्ञ करै’ छथि ऋषिवर
इन्द्रक सत्ता - द्वेषक
प्रतिभार थम्है’ छथि
जागरण अनै’ छथि
मनोबलक दृढ़तामे
वर्षा - विज्ञानक
मंत्र-प्रभाव पबै’ छथि
काशीमे किछु दिन
भ्रमण तथा शिव-अर्चा
कयलाक बाद
ऋषिवर विन्ध्याद्रि टपै’ छथि
विन्ध्याचल पर
वामा-शक्तिक पूजन क’
ऋषिवर दक्षिण
पंथक संधान करै’ छथि
एकता वाम - दक्षिण
पंथक क’ स्थापित
ऋषिवर अगस्त्य
सभ भेद भाव हटबै’ छथि
उत्तरमे केन्द्रित
ज्ञान रश्मिके मुनिवर
दक्षिण भारतमे
लोकप्रिय बनबै’ छथि
दक्षिणक द्रविड़
संस्कृतिके आर्य प्रभा द’
राष्ट्रक सीमाके ऋषि
असीम स्वर दै’ छथि
शुद्धात्म - शिवत्व -
प्रतीक भावसँ ऋषिवर
तमग्रस्त तमिलके
व्याकरणक वर दै’ छथि
सांगीतिक ध्वनि कम्पनसँ
रावणके ऋषि
बिनु शस्त्र पकड़ने
बहुत दूर भगबै’ छथि
आसिन्धु - हिमालय
एक देश भारतके
उन्मुक्त चेतना द’
अगस्त्य जगबै’ छथि
वन - वास - कालमे
राम तथा लक्ष्मणके
रावण-संहारक मंत्र-ज्ञान
दै’ छथि ऋषि