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दसरथ नन्नन चलल बियाह करे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दसरथ नन्नन चलल बियाह करे, माँथ बन्हले<ref>बाँधा</ref> पटवाँस<ref>पटमौर। यह करीब चार अंगुल चौड़ा होता है तथा इसमें नीचे की ओर फूल बनाकर लटकाये रहते हैं। इससे ललाट पर बाँधा जाता है।</ref> हे॥1॥
केहि<ref>कौन</ref> जे रामजी के पगिया सम्हारल, केहिं सजल बरियात हे।
केहिं जे रामजी के चनन चढ़ावल साजि<ref>सजाकर</ref> चलल बरियात हे॥2॥
भाई भरथ रामजी के पगिया सम्हारल, दसरथ साजे बरियात हे।
माता कोसिला रानी चनन चढ़ावल, साजि चलल बरियात हे॥3॥
एक कोस गेल राम, दुइ कोस गेल, तीसरे में बोले बन काग हे।
भाई भरथ राम के पोथिया बिचारलन, काहे बोले बन काग हे।
रामजी के पोथिया धोतिया धरन<ref>छप्पर को धारण करने वाली शहतीर</ref> पर छूटल, ओही बोले बन काग हे॥4॥
जब बरियात दुआर<ref>द्वार</ref> बीच आयल, चेरिया कलस लेले ठाड़<ref>खड़ी है</ref> हे।
परिछे<ref>परिछन करने के लिए विवाह के समय स्त्रियाँ वर को दही-अक्षत का तिलक लगाती हैं और लोढ़ा आदि वर के माथे के चारों ओर घुमाती हैं। वर की रक्षा के लिए एक न्यास-विधि।</ref> बाहर भेलन सासु मदागिन<ref>महाभागिन, श्रेष्ठ</ref> हाथ दीपक लेले ठाड़ हे॥5॥
कवन बर के आरती उतारब, कवन बर बियहन<ref>विवाह करने</ref> आएल हे।
जेकरहि<ref>जिसके</ref> माँथ मउरी<ref>मौर</ref> भला सोभे, तिलक सोभले लिलार हे॥6॥
ओही बर के आरती उतारब, ओही बर बियहन आएल हे।
सासु के खोइँछा<ref>आँचल, जो मोड़कर पात्र की तरह बना लिया गया है</ref> में बड़े बड़े खेलौना, से देखि रिझल<ref>रीझ गया</ref> दमाद हे।
सासु के खोइँछा में मोतीचूर के लड्डू, से देखि उनके<ref>मान के साथ धीर-धीरे रोना</ref> दमाद हे॥7॥
भेल बियाह, बर कोहबर चललन, सारी सरहज<ref>साले की पत्नी</ref> छेंकलन<ref>छेंक दिया, रोक दिया</ref> दुआर हे।
बहिनी के नमवाँ<ref>नाम</ref> धरहु<ref>धरो, रखो, बतलाओ।</ref> बर सुन्नर, तब रउरा<ref>जन्म लिया</ref> कोहबर जाएब हे॥8॥
हमरहिं बंसे बहिनी नहीं जलमें<ref>जन्मी</ref> जलमल<ref>जन्म लिया</ref> लछुमन भाइ<ref>भाई, भ्राता</ref> हे।
सेहु भाइ जउरे<ref>साथ ही</ref> चलि आएल, माँगलक<ref>माँगता है</ref> सलिया बियाहि हे॥9॥

शब्दार्थ
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