भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दस्तक के बारे में कुछ विचार / अरविन्द श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

द्वार पर दस्तक पड़ी है
चाहता है कोई अन्दर आना

होगा कोई कुशल-क्षेम पूछने वाला
याकि हाथों में बुके लिए
चाहता होगा करना अभिवादन
प्रगति के नयाब नुस्खों के साथ नेटवर्क मार्केटिंग का
होगा कोई तर्क-सज्जित लड़का
या कोई जैक पॉट हाथ लगने की शुभ सूचना देने वाला
या कोई कवि अपनी ताजा कविता के साथ
कोई होगा सियासी गलियारों की चर्चा करने वाला
उलाहनों की पोटली खोलने आया होगा कोई
उधार मांगने वालों की भी कमी नहीं
इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता
कि सदियों की सबसे संक्रामक बीमारी
भूख को साथ लाया होगा कोई

बहुत सारी चीज़ें आती हैं जीवन में
बग़ैर दस्तक के
जैसे सुनामी !
जैसे उल्कापिंड !
तब हम नहीं कहते
थोड़ी देर में आना
अभी हम व्यस्त हैं, डाइनिंग टेबुल पर।