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दस्तक / महावीर उत्तरांचली
Kavita Kosh से
काल के कपाल पर
अगर मेरी रचनाएँ दस्तक नहीं दे सकती
बुझे हुए चेहरों पर रौनक नहीं ला सकती
मजदूरों के पसीने का मूल्यांकन नहीं कर सकती
शोषण करने वालों का रक्त नहीं पी सकती
तो व्यर्थ है मेरा कवि होना
इन रचनाओं का काग़ज पर आकार लेना
और व्यर्थ है आलोचकों का
इन्हें महान रचनाएँ कहकर संबोधित करना