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दस्ताने / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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मैं गरम कपड़ों के बाज़ार में था
मन हुआ
कि स्त्री के लिए
हाथ के ऊनी दस्ताने ले लूँ
पर ध्यान आया
कि दस्ताने पहनने की फुर्सत
उसे है कहाँ
गृहस्थी के अथाह जल में
डूबे उसके हाथ
हर वक़्त गीले रहते हैं
तो क्या गरम दस्ताने
स्त्री के हाथों के लिए बने ही नहीं...?
" ये सवाल हमसे क्यों पूछते हो..."
तमाम गर्म कपड़े
ये कहते, मुझ पर ही गर्म हो रहे थे