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दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए / मुस्तफ़ा ख़ान 'शेफ़्ता'
Kavita Kosh से
दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए
किन हसरतों से ख़ून हम अपना पिया किए
शुक्र-ए-सितम ने और भी मायूस कर दिया
इस बात का वो गै़र से शिकवा किया किए
कब दिल के चाक करने की फ़ुर्सत हमें मिली
नासेह हमेशा चाक-ए-गिरेबाँ सिया किए
तश्बीह देते हैं लब-ए-जाँ-बख़्श-ए-यार से
हम मरते मरते नाम-ए-मसीहा लिया किए
ज़िक्र-ए-विसाल-ए-गै़र-ओ-शब-ए-माह-ओ-बादा से
ऐसे लिए गए हमें ताने दिया किए
थी लहज़ा लहज़ा हिज्र में इक मर्ग-ए-नौ नसीब
हर-दम ख़्याल-ए-लब से तेरे हम जिया किए
तर्ज़-ए-सुख़न कहे वो मुसल्लम है ‘शेफ़्ता’
दावे ज़बान से न किये मैं ने या किए