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दस्त-ए-कोताह पे इल्ज़ाम लिए जाते हैं / राम अवतार गुप्ता 'मुज़्तर'

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दस्त-ए-कोताह पे इल्ज़ाम लिए जाते हैं
मय-कदे से जो तही-जाम लिए जाते हैं

जीते जी कोई नहीं अहल-ए-मोहब्बत का शरीक
बाद मरने के बड़े नाम लिए जाते हैं

एक तू है की हमें दिल से भुला बैठा है
एक हम हैं की तेरा नाम लिए जाते हैं

यास में डूब के हम मंुतज़िर दीद-ए-तेरे
रख के आँखों में दर ओ बाम लिए जाते हैं

लुट गए होश तो क्या रब्त-ए-मोहब्बत है यही
बे-ख़ुदी में भी नाम लिए जाते हैं