दस दोहे - 1 / महेश कटारे सुगम
1
ऊँच, नीच और जात सें, जिन खों रहौ परेज,
नईं कर पाए वे कभऊँ, औगुन कौ बंदेज ।
2
पूछत नईंयाँ हाल तक, बनौ फिरत है ख़ास,
नीछत सबकौ चामरौ, कर दऔ सत्यानास ।
3
छोड़ौ बातें नोट की, बनौ रहन दो खोट,
हम नंगन पै का, धरौ रै गऔ फटौ लंगोट ।
4
डार नाक पै चींथरा, खूब बजा रए गाल,
सरम बेंच दई हाट में, मौटी हो गई खाल ।
5
आबादी के सामने, कछू न बैठै औज,
बाराना दुख झेलवें, चाराना की मौज ।
6
सुख की ओढ़े ओढ़नी, सुविधा को सिंगार,
ऐसी जीवन नार सें, हुइयै कबै चिनार ।
7
चढ़ौ करेला नीम पै ,करऔ हो गऔ और,
न्याय मागवे आए हम, जो मुखिया की पौर ।
8
धरम करम उपदेश तौ, भरे पेट कौ काम,
जब हो भूखौ आदमी, का रहीम का राम ।
9
भूख लगी है पेट में, कितै टिकैगौ ध्यान,
और कहूँ तुम जान कैं, बाँटो अपनौ ज्ञान ।
10
ऐसौ कैसौ राज है, ऐसी कैसी रीत,
मेंनत की तौ हार है, बदमासी की जीत ।