दस दोहे - 2 / महेश कटारे सुगम
1
कैसी कैसी आफ़तें, कैसे अला अठेन,
घर में आवे झूंक रए, मुद्दत सें सुख चैन ।
(अला अठेंन=दुर्योग)
2
गाँज बने हैं गौंजना, बिखरी बिखरी घार,
परे परे अब देख रए, सबरे पैरेदार ।
(गाँज=घास के पूलों का व्यवस्थित ढेर / गोजना=तितर बितर घास / घार=समूह)
3
बगरा दऔ है रायतौ, कुत्ता रए हैं चाट
लगी लगाई उठ गई, रंग बिरंगी हाट ।
(बगरा=फैलाना / रायतौ=छाछ का पेय)
4
करतई रेंहें मौत तक, लिखवे वारौ काम,
चाहे गारीं दो हमें, चाहे देओ इनाम ।
5
का होनें है का पतौ, मर जावे के बाद
ऊँगें बनकें बीज हम कै, फिर हुइएँ खाद ।
6
देखे जाकें शैर में, रैवे वारे ठाट,
जितै बहू कौ पीसवौ, उतईं ससुर की खाट ।
7
ऐसे हैं जे मतलबी, खूब करत हैं मौज,
न्यारे मयरी में रहें, और खीर में सौंज ।
8
इक्कर इनकी चलत है, सैवे हम मजबूर,
देखत नईंयाँ कोउ खौं, बेरी सौ रये झूर ।
9
माढ़त हैं जे चूंन सौ, सतुआ सौ रए घोर,
हम बुकरेलू शेर, वे घींचें रए मरोर ।
10
पढ़े लिखे मौड़ा सबई, रए चप्पलें टोर,
नईं मिल रई है नौकरी, कुत्ता रए कड़ोर ।