दस दोहे - 4 / महेश कटारे सुगम
1
हो रई आज चुनाव में, ऐसी लूट खसोट,
जी के जित्ते लठ्ठ हैं, ऊ के उत्ते वोट ।
2
सरपंची जब सें मिली बदल गए सब ठाट,
सचिव और सरपंच मिल, कर रए बन्दरबाँट ।
3
गाँव अखाड़ों बन गऔ, डण्ड रए सब पेल,
सबरे खेलत फिरत हैं, सरपंची कौ खेल ।
4
सैकराक मुर्गा कटे, ख़ूबई बटी सराब,
भए गंगा के क़ौल जब, जीते तबई चुनाव ।
5
चरपट्टा ऐसौ मचौ, दूनर हो गऔ गाँव,
घर घर में जा कें परे, मुखिया जू नें पाँव ।
6
हमनें खूबई देख लये, ई सत्ता के ठाट,
काल बिछाई ती खुदई, आज उठा रए खाट ।
7
खुशी-खुशी में भूल गए ठौर, ठिकानौ, गैल,
फोर दऔ है पोतला, बसकारे के पैल ।
8
कै,कै कें तौ हार गए, सुन सुन फूटे कान,
पर हिस्सा में आऔ नईं,जनियन खों सम्मान ।
9
मैया, देवी, लच्छमी, का का ऊसें कैत,
मनौ घरन में देख लो, दासी बनकेँ रैत ।
10
पथरन की देवी पुजें, और चढ़ावें खीर,
घर की देवी खों मनौ, पैरा दई जंजीर ।