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दहलीज़ / अनिमा दास
Kavita Kosh से
कुछ शेष जो रह गया है ..
तेरी दहलीज पर ,एक दिन
छोड़ आऊँगी
देखना , तेरे आँगन के
आसमाँ पर
बादल बन, ठहर जाऊँगी ।
बरसूँगी रह- रहकर
जब तू तन्हा होगा
आँखें भी नम होंगी तेरी
उदास मैं , लौट आऊँगी ।
कुछ शेष जो रह गया है
तेरी दहलीज पर , एक दिन
छोड़ आऊँगी ।
जिन सपनों को बोया था तूने
मेरी पलकों पर कभी
उन्हें बिस्तर पर तेरे
सलीके से रख आऊँगी
खामोशी के दो चार शब्द
तेरी जुबाँ से , चुरा लाऊँगी ।
कभी पूछा न था तुझे
क्यों मौसम- सा तू
बदलता रहा
जहाँ मैं लहराती थी
संग कभी
जवाँ कलियों की तरह?
कुहासे भर आँखों में
दर से तेरे चली आऊँगी,
कुछ शेष जो रह गया है
तेरी दहलीज पर ,एक दिन
छोड़ आऊँगी ।
कुछ शेष जो रहा गया है
तेरी दहलीज पर , एक दिन
छोड़ आऊँगी ।
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