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दहलीज़ / कल्पना लालजी
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उम्र की इस दहलीज़ पर आकर
अहसास हुआ है मुझको
क्या खोया और क्या है पाया
कोई बता दे मुझको
जीवन का वह लंबा अंतराल
सामने है मेरे
बीते कैसे इतने साल और
बीते साँझ –सवेरे
सोचता हूँ तो हंसी बड़ी आती है
इसी उधेड़बुन में हूँ बैठा
छटपटाहट मन की समझाती है
भूल जा
हुआ जो भी था जीवन में तेरे
कर्म वही किये तूने
जो थे किस्मत में तेरे
मत रख उन सब का हिसाब
वरना पछतायेगा
बीता है जो भी पल अब वापस न आयेगा