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दहशतगर्दी / मनीषा जैन

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कितनी सहजता से चला दी उसने बंदूक
चुप्पी साधकर आया
और निपटा दिया सबको
दुनिया में विष फैला दिया उसने

दुनिया भर के बच्चों को ललकारा है उसने
अब बात बच्चों पर आ टिकी है
दुनिया की आखिरी उम्मीद पर

अब हत्यारे पता नहीं, कौन सी गली से निकलें
दबे पांव रखें बिल्ली की तरह
और रोक दें रास्ता आपका
ठूंस दें गोली आपके पेट में
और हो जाएं फरार

जेल भर जाए निरपराध लोगों से
कवि कविता लिखते रह जाएं
फिर सारी आत्माएं इकठ्ठी होकर
चौक पर करेंगी मातम

वो फिर आयेगें कहीं
दफतर में, बाजा़र में
एकान्त में, होटल में
और बंदूक का घोड़ा छोड़ देंगे सरे बाज़ार
शहर के चौराहे पर
सभी स्तब्ध, सभी हैरान
सभी औचक, सब परेशान
सभी निहत्थे, भागो... भागो
सभी....धड़ाम.... धड़ाम
सभी गिरे....गिरे

लेकिन वो तो निकल गया
पता ही नहीं किधर से.... कहां से
अभी तलाश जारी है उसकी
इश्तेहार दीवारों पर लगाए जा चुके हैं
वह छुप गया है खंडहरों में या गुफा में
या वह बैठ गया है राष्ट्राध्यक्षों के साथ

वह विकास की पांच साला योजना बनाने में व्यस्त है
लोग छिपे हैं घरों में अपने
आज शहर में स्वागत समारोह है उसका
सब जगह तैयारी पूरी है
शहर का चप्पा चप्पा सजाया गया है
लेकिन वह तो किसी और शहर गया है
शायद दहशतगर्दी करने।