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दहेज केॅ सबाल छै / कैलाश झा ‘किंकर’
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दहेज केॅ सबाल छै ।
मचल सगर बबाल छै ।।
युवा-युवा केॅ हाथ मेॅ,
न क्रांति केॅ मशाल छै ।
बियाह बिन दहेज के,
विरोध भी कमाल छै ।
न पुत्र केॅ पिता छिकै,
बजार केॅ दलाल छै ।
बहू जलै मरै सगर,
ससुर नै कलाल छै ।