दाँत / नेहा नरुका
हर बार जब उसका दाँत टूटता
वह रोने लगती ।
उसे चुप कराने के लिए
मैंने एक अधसुनी कहानी को अपनी शैली में रचा —
कहानी एक दंतपरी की
जो बच्चों के तकिये के नीचे रखे टूटे दाँत ले जाती और बदले में नए उजले मज़बूत दाँत दे जाती ।
परी यह काम केवल रात को करती
जब वह नींद की गोद में झूल जाती ।
धीरे - धीरे उसके सारे दाँत टूटते गए
हर दाँत के टूटने के साथ बचपन भी थोड़ा - थोड़ा छूटता गया
वह जान गई दंतपरी की कहानी है झूठी
जिस साल उसके अन्तिम दाँत टूट रहे थे
उस साल वह कई कहानियों की आलोचक हो गई थी ।
एक बार जब लाई - सेव खाते हुए उसका दाँत टूटा
वह आराम से दाँत पकड़कर पनारे तक चली आई
और दाँत टूटने की सूचना के साथ
पानी से कुल्ला करने लगी
मुझे लगा वह अपना दाँत फेंक देगी
मगर उसने दाँत को ऐसे पकड़ा
जैसे पकड़ रही हो अपना जाता हुआ बचपन
और बोली —
'मैं इसे तकिए के नीचे रखूँगी'
'मगर अब तुम ये जान चुकी हो,
दंतपरी की कहानी झूठी है।'
'हाँ, मुझे मालूम है। मगर फिर भी मुझे ये करना है ।'
रात होते ही वह दाँत तकिये के नीचे रखकर
गहरी नींद में सो गई ।
सुबह उसके उठने से पहले मैंने वह दाँत उठाया
और उसे कहीं कोने में छिपा दिया ।
वह उठी तो मैंने कहा —
'और क्या हुआ दाँत का ?'
'वह तो गायब हो गया !'
वह जानती थी दाँत का गायब होना दंतपरी का चमत्कार नहीं, मेरी करतूत है
पर उसने नहीं कहा कुछ
वह, बस, ख़ुश थी।
उसके दाँतों के गिरने-उगने के साथ मैंने जाना कि
कैसे एक झूठ बदलता है एक कथा में,
कैसे कथा बदलती है विश्वास में,
कैसे विश्वास बदलाता है प्रेम में,
और कैसे प्रेम बदलता है सुख में ।
ऐसी ही रची होगीं पुरखों ने कई - कई कथा-कहानियाँ
और हज़ारों विविधतापूर्ण संस्कृतियाँ-सभ्यताएँ
इन्हें रचने का उद्देश्य शायद शुरू - शुरू में यही रहा होगा
कि कैसे किसी को दुख से बचाया जाए
मगर कालान्तर में वह बन गईं
बहुसंख्यक को रुलाने-सताने-गिराने-दबाने का अचूक साधन
एक खूँख़ार दाँत !
